जगत संगीत से अनुकूलन,अनंत से जोड़ता है।
जगत संगीत से अनुकूलन, अनन्त से जोड़ता है। गुरमीत सिंह आहत नाद और अनाहत नाद,दोनों ही जगत में व्याप्त है,परन्तु हम में से अधिकांश को आहत नाद का ही अनुभव है।आहत नाद अर्थात भौतिक संगीत,संकीर्तन,गीतों,क्लासिकल संगीत,लोक संगीत,पश्चिमी संगीत इत्यादि के रूप में प्रचलित है।आहत नाद का एक और रूप शोर के रूप में भी वातावरण में व्याप्त रहता है।जिन आहत नाद की तरंगों से व्यक्ति आकर्षित होता है, व जुड़ता हुए महसूस करता है,ऐसा नाद प्राय:संगीत के रूप में परिभाषित होता है।व्यक्ति स्वयं में धारित भावनाओं की गुणवत्ता के अनुसार संगीत की प्रकृति पसंद करता है।कुछ लोग शुद्ध शास्त्रीय संगीत पसंद करते है,कुछ मधुर धुनों के दीवाने है,कुछ तीव्र गति के संगीत पर थिरकते है।ऐसे भी लोग पाए जाते है,जिनको संगीत से कोई लगाव नहीं होता।जो संगीत से दूर हैं,वे संभवत:किन्हीं मानसिक परेशानियों से पीड़ित हो सकते हैं,अथवा संगीत की मधुरता उनको कोई भी मानसिक आनंद नहीं दे पाती है।अवचेतन में संकलित गुण तथा भावनाएं ही,व्यक्ति के निजी पसंद तथा शौक को निर्धारित करती हैं।जो लोग संगीत की कर्णप्रिय ध्वनियों से भी आनंदित नहीं हो पाते,उनकी आत...