जगत संगीत से अनुकूलन,अनंत से जोड़ता है।

जगत संगीत से अनुकूलन, अनन्त से जोड़ता है।
गुरमीत सिंह
आहत नाद और अनाहत नाद,दोनों ही जगत में व्याप्त है,परन्तु हम में से अधिकांश को आहत नाद का ही अनुभव है।आहत नाद अर्थात भौतिक संगीत,संकीर्तन,गीतों,क्लासिकल संगीत,लोक संगीत,पश्चिमी संगीत इत्यादि के रूप में प्रचलित है।आहत नाद का एक और रूप शोर के रूप में भी वातावरण में व्याप्त रहता है।जिन आहत नाद की तरंगों से व्यक्ति आकर्षित होता है, व जुड़ता हुए महसूस करता है,ऐसा नाद प्राय:संगीत के रूप में परिभाषित होता है।व्यक्ति स्वयं में धारित भावनाओं की गुणवत्ता के अनुसार संगीत की प्रकृति पसंद करता है।कुछ लोग शुद्ध शास्त्रीय संगीत पसंद करते है,कुछ मधुर धुनों के दीवाने है,कुछ तीव्र गति के संगीत पर थिरकते है।ऐसे भी लोग पाए जाते है,जिनको संगीत से कोई लगाव नहीं होता।जो संगीत से दूर हैं,वे संभवत:किन्हीं मानसिक परेशानियों से पीड़ित हो सकते हैं,अथवा संगीत की मधुरता उनको कोई भी मानसिक आनंद नहीं दे पाती है।अवचेतन में संकलित गुण तथा भावनाएं ही,व्यक्ति के निजी पसंद तथा शौक को निर्धारित करती हैं।जो लोग संगीत की कर्णप्रिय ध्वनियों से भी आनंदित नहीं हो पाते,उनकी आत्मा सदैव,कहीं न कहीं सब कुछ हासिल होने के बाद भी अपूर्णता का अनुभव निश्चय ही करती होगी,परंतु व्यक्ति आत्मा की इस बैचेनी का आकलन नहीं कर पाते व न ही, कारण पता लगा पाते हैं।अनाहत नाद जो कि परम सत्ता का दिव्य संगीत है से,अधिकांश लोग अपरिचित ही रह जाते हैं।

सभी पुरातन ज्ञान,वेद,संत,अवतार तथा अध्यात्म के विचारक,इस तथ्य पर एकमत हैं कि,जगत की उत्पत्ति का मूल स्रोत,ध्वनि की तरंगों से ही उत्पन्न हुआ है, इन दिव्य ऊर्जा की तरंगों का प्रारम्भ, निरन्तर विस्तारित होकर ऊर्जा का घनीभूत होना परमेश्वर की इच्छा से माना गया है।अर्थात यह दिव्य ध्वनि,जिसको ओम अथवा ओंकार का नाम दिया गया है,से ही इस अनंत जगत की उत्पत्ति हुई है।जीवन के मूल में,ओंकार का संगीत प्रत्येक कण में समाया हुआ है।सजीव हो यां निर्जीव,प्रत्येक तत्व के परमाणु निरन्तर स्पंदन करते रहते हैं,यह तथ्य आधुनिक भौतिक शास्त्र तथा क्वांटम फिजिक्स के वैज्ञानिक भी मानते है। ऐसी कोई वस्तु नहीं है,जिसके अणु,परमाणु स्थिर हों।प्रत्येक स्पंदन की फ्रीक्वेंसी,ध्वनि उत्पन्न करती है,और जब यह फ्रीक्वेंसी एक निश्चित क्रम में संयोजित हो तथा मस्तिष्क में संधारित गुणों से अनुकूलन करती है तो,मधुर संगीत का रूप ले लेती है,ऐसा मधुर संगीत आत्मा के स्तर तक गहरे जा कर अंदर तक झंकृत कर देता है।इस आनंद को शब्दों में बयान करना अत्यंत कठिन है।मधुर संगीत की तरंगे,उनकी फ्रीक्वेंसी तथा एम्प्ली ट्यूड निश्चित ही जगत संगीत की गुणवत्ता के समतुल्य होता है,इसीलिए जब संगीत की मधुरता चाहे गीत के रूप में हो,अथवा संकीर्तन के रूप में हो,को सुनने में जो आनंद प्राप्त होता है,वह ईश्वरीय शक्ति के निकट होने का आभास कराता है।इसीलिए संगीत को ईश्वर की उपमा दी जाती है।

 नाद  से उत्पन्न संगीत को अपनी रुचि के अनुसार सभी व्यक्ति श्रवण करते है,तथा अवचेतन की गुणवत्ता के अनुकूल उसका आनंद भी उठाते हैं।आनंद की अनुभूति तथा मात्रा,ईश्वरीय गुणों के समानुपाती होती है,अर्थात मधुर,दिव्य,भक्ति से प्रेरित संगीत से जितना अधिक अनुकूलन होगा,उतनी ही ईश्वर से नजदीकी होगी।जो लोग संगीत का गायन तथा वादन करते है,उनकी चेतना अनंत से निश्चित रूप से संयोजित हो जाती है,उनके मुख तथा हाथों के अनुकंपन से ही उत्पन्न नाद,सुनने वालों को अदभूत आनंद देता है।ऐसे गीतकार,गायक तथा संगीतकारों पर ईश्वर की अनन्य कृपा के फलस्वरूप ही,दिव्य संगीत की उत्पत्ति होना संभव होता है।संकीर्तन तथा अन्य संगीत जब सुनने वाले को मंत्र मुग्ध कर देता है तो,वास्तव में परम सत्ता का प्रेम, गायन तथा वादन करने वालों के माध्यम से श्रोताओं पर बरस रहा होता है।ये जो परम सत्ता के वाहक प्रतिनिधि है,अनंत फ्रीक्वेंसी से सीधे जुड़े होते हैं,तथा दिव्य शक्ति का अनन्य प्रेम तथा कृपा को मधुर संगीत के रूप में प्रसारित करते हैं।संगीत जितना अधिक दिल को छू लेने वाला व मन को शांति पहुंचाने वाला होगा,उसका गायक तथा वादक उतना ही अधिक परम का प्रिय होगा,अर्थात जिसको दिव्य का स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त है,उसके गायन व वादन  का अमृत स्वरूप दिव्य तथा आकर्षक होना निश्चित है।फिल्म जगत में ऐसे अनेक गीतकार,संगीतकार तथा गायक हुए है,जिनकी रचनाएं वर्षो बाद भी मन और आत्मा को अभिभूत कर देती हैं। इन प्रतिभाओं पर निश्चित ही सृष्टि रचयिता का आशीर्वाद,स्नेह,अनंत प्रेम होने से ही ऐसे विलक्षण संगीत की उत्पत्ति हुई है।प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी तथा उनकी टीम ज्वलंत उद्घाहरण है कि,आज भी उनकी गायकी का श्रवण व स्मरण मात्र अभिभूत तथा रोमांचित कर देता है।

कल्पना करें कि,जब आहत नाद का हर दिल अजीज संगीत तथा भक्ति संकीर्तन ,आपको एक अलग ही आयाम में ले जाता है तो,यदि आप सीधे ही अनाहत नाद अर्थात ब्रह्म संगीत श्रवण करेंगे तो,आपके अंदर प्रेम व शांति की अनुभूति कितने चरम पर होगी।अनाहत नाद को श्रवण करने के लिए भी एक तैयारी की आवश्यकता है।जगत में व्याप्त इस दिव्य संगीत सुनने का सामर्थ्य हासिल करने के लिए,सतत  माइंड फुल नेस अवस्था में रहना नितांत आवश्यक है। जब मन अवांछित कचरे से मुक्त होगा तो,अपने आप,हमारे ऊर्जा चक्र,दिव्य संगीत की तरंगों का शरीर में प्रवेश द्वार खोल देंगे।हमने वर्षों से जजमेंटल होकर जो,आधारहीन नकारत्मक धारणाएं अवचेतन में पाल रखी है,वो किन्हीं भी सकारत्मक ऊर्जाओं के प्रवेश में बहुत कठिन अवरोध उत्पन्न किए हुए हैं। इस अनुपयोगी कचरे के ढेर से खुद को मुक्त करना ही होगा यदि हम अभिभूत कर देने वाले जगत के दिव्य संगीत को श्रवण करने की शक्ति व क्षमता हासिल करना चाहते है।अवचेतन में गहरे तथा स्थाई रूप से स्थापित इस अवांछित नाकारात्मक ऊर्जा को निकाल देना भी सरल नहीं है।इसका सबसे सरल उपाय है कि, दिन प्रति दिन समर्पित होकर सकारत्मक भावों व गतिविधियों को जीवन में स्थान दें,तथा मेडिटेशन साधना में स्वयं को ,इन दुष्ट ऊर्जाओं से मुक्त होने का अफर्मेशन देते हुए,दिव्य के प्रेम व ऊर्जा को स्वयं में प्रवेश देने का संकल्प तथा आग्रह करें। हम जैसे जैसे पॉजिटिव एनर्जी को बढ़ाते जाएंगे,वैसे वैसे ही साधना में भूत और भविष्य के विचारों से मुक्त होकर,बीइंग माइंड फुल स्टेट में आते जाएंगे।

तो अब  सर्वप्रथम संकल्प लेते हुए,नियमित रूप से अपने को सकारत्मक व्यक्तित्व में परिवर्तित करने का अभ्यास करें।परम सत्ता से प्रार्थना करें कि,अनाहत ब्रह्म नाद, ऊँ तथा ओंकार की दिव्य ध्वनि तरंगों को श्रवण करने,उन्हें महसूस करने तथा एक अभूतपूर्व शांति की मनो स्थिति में आने का सामर्थ्य आपको प्रदान करें।जगत उत्पत्ति के मूल, ध्वनि तरंगों से जुड़ कर, जीवन के वास्तविक आनंद,उल्लास,उमंग और निस्तब्ध कर देने वाली प्रेम से सारोबार कर देने वाली शांति का जो परमानंद प्राप्त होगा वह शब्दातीत होगा। यहीं आकर जीवन जीने के असली आनंद से परिचय हो सकेगा।स्मरण करें और गाएं,सुखविंदर सिंह का लोकप्रिय गीत फिल्म आस्तित्व से   “सबसे पहले संगीत बना फिर सूरज चांद सितारे "

गुरमीत सिंह

Comments

  1. मित्रों,अध्यात्म और संगीत परस्पर ,एक दूसरे से अत्यंत गहराई से स्थाई रूप से संयोजित है।संगीत का देवीय स्वरूप अनाहत नाद आत्मा का ही अभिन्न अंग है,जो लोग संगीत से श्रवण अथवा गायन ,वादन से जुड़े है और उनकी रचनाएं ईश्वर के संदेश की वाहक हैं।इसी विषय को लेकर आपके सामने पुन: उपस्थित हूं।आपका स्नेह तथा आशीर्वाद सदैव की भांति मिलता रहेगा,ऐसा दृढ़ विश्वास है।
    धन्यवाद,
    गुरमीत सिंह

    ReplyDelete
    Replies
    1. Dear saluja, shaandaar lekhan kriti hai, sangeet vo vidha hai , jiske shravan se manav kya ped podhe mai bhi positive dekhi gai , maine padh hai gaaye bhi music ki awwaj se aadhik dudh dene ki capacity bd jati hai, music se loneliness ka ahsaas bhi nahee ,ek positive oora aapke aas paas rhta hai, bahut achchha lekhan hai tumhaara, badhaai

      Delete
    2. You are very right dear RRT,this is actual power of music. Listener as well performer,both are blessed by almighty. Thanks for your compliments.

      Delete
    3. संगीत बनने से पहले की परिस्थिति। फिर आते हैं श्रुति और स्वर कोई भी संगीतमय फिकरा , जिसे संगीतकार अपने जहन से सोचता है , वो अनहद नाद है। गाने से पहले वो उसे अपने मन में सुनता और भोगता है। अनहद नाद आहद नाद कैसे बनता है ? मैं तो यह कहूंगा कि सब कुछ शून्य से ही आता है। जब आप शून्य में डूबे होते हैं तो आपको आवाहन की इच्छा होती है- आप धारणा या संकल्प करने लगते हैं। यह योग की पहली पौड़ी होती है। आवाहन का मतलब है किसी भी चीज की बहुत तीव्र इच्छा रखना।
      You have been a great resource touching subjects of heart ...we inspire with you

      Delete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. When one reaches the deepest meditative state, the divine music surrounds.
    Please keep sharing your experiences, it's motivating in the spiritual journey....

    ReplyDelete
    Replies
    1. Yes you are right,but needed clear mind free of all worries and negetive emotions.Any how Thanks dear Ranjan for deeply reading and sharing your view

      Delete
  4. Once again excellent writing. You have such beautiful command on language and subject matter. Keep motivating dear Gurmeet.

    ReplyDelete
  5. Once again excellent writing. You have such beautiful command on language and subject matter. Keep motivating dear Gurmeet.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks dear Rajiv,as your motivational words always encourage me to write with somewhat different view.

      Delete
  6. भाई गुरमीत बहुत शानदार लेखन। अनाहत नाद अंतर आत्मा से ही प्रकट होता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद,प्रिय मित्र।आपका अभिमत बहुत स्वागत योग्य है।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

ऑटो पायलट मोड से बीइंग माइंड फुल तक

अवचेतन के मित्र बनें,मालिक नहीं।

कोई गंतव्य नहीं,आनंदित रहना ही गंतव्य है।