ऑटो पायलट मोड से बीइंग माइंड फुल तक

ऑटो पायलट मोड से,बीइंग माईंडफुल होने का रूपांतरण।
  
     गुरमीत सिंह

आज अधिकांश वाहन निर्माता उनके वाहनों के उत्पादन में ऑटो पायलट मोड तकनीक का प्रयोग करने को प्रोत्साहन दे रहे हैं।अब ड्राइवर आरामतलब बनाए जा रहे हैं,वाहन स्वयमेव ही अपना रास्ता खोज कर भीड़ भाड़ वाले स्थानों से गुजर कर मंजिल तक निर्धारित समय पर गति संधारित करते हुए पहुंच जाएंगे।चालकों के पास ज्यादा कार्य नहीं बचा,कुछ वाहन तो चालक विहीन रहेंगे।गाड़ी में लगे उन्नत सेंसर चालन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व निभाएंगे। हम लोगों में से अधिकांश लोग,पूर्व से ही स्वचालित मोड पर दैनिक क्रिया कलाप कर रहे हैं।निवास से कार्य स्थल पर आने जाने,तथा कार्य स्थल पर बहुत से कार्य अवचेतन मन खुद ही करता रहता है।चेतन मन अर्थात ड्राइवर कहीं और खोया रहता है।कार्यस्थल अथवा बाजार से कब गंतव्य पर पहुंच गए पता ही नहीं चला। सफर में आने वाले विहंगम प्राकृतिक मनमोहक दृश्य यूं ही छूटते चले गए।चेतन मन कहीं किसी से चैटिंग में लगा रहा।जिंदगी ऐसे ही गुजरती जा रही है, ऑटो पायलट मोड पर।
सुबह से रात हो जाती है,वर्षों गुजर जाते हैं,शहर के रहवासियों को पता ही नहीं चलता कि, प्रात: काल पक्षिओं का मोहक कलरव कैसा है।स्नान के समय जल की बूंदे कितनी सुहावनी हैं,वर्षा ऋतु में आकाशीय जल में भीगने का आत्मिक आनन्द क्या होता है।सुबह की नर्म नर्म धूप का आनंद पता नहीं कब लिया था।शरीर अब भौतिक वस्तु बन कर रह गया है,यंत्रवत कार्य करने के लिए, एहसासों की भूमिका नगण्य हो गई है।अब हम स्वचालित मोड पर आ चुके हैं,वाहनों तथा यांत्रिक मशीनों के माफिक।जो सहज आनंद प्रकृति से सुलभ है,उसका अहसास ही नहीं है, वीक एंड पर बाजारों में खुशी खोजते हैं, व खरीदते हैं।यह तात्कालिक क्रय की गई खुशी वीकेंड के साथ ही समाप्त हो जाती है,पुन:दिनचर्या यांत्रिक हो जाती है,बहुत सारा पैसा कमाने के लिए।पैसा रहेगा तो फिर एन्जॉय करेंगे।
यह शरीर मात्र भौतिक यंत्र नहीं है,इसको जानते हुए भी अनजान बने रहना,किस दिशा में ले जाएगा।चेतन मन को, अवचेतन ऑटो पायलट मोड पर क्रियान्वित करता है व,  चेतन मन जुगाली करने में लगा है।इसी में अवचेतन को मजा भी आता है,व्यर्थ में सजग तथा सतर्क रह कर चेतन अपनी ऊर्जा क्यों बर्बाद करके,जुगाली बन्द कर दे।ये जो अवचेतन मन है,हमेशा सबसे आसान रास्ता खोजता है,इसी लिए लाखों लोग मन से मजबूर होकर नशे की गिरफ्त में आ जाते है।चेतन खोया रहता है,लेकिन ये गलती चेतन की नहीं है,निश्चित रूप से अवचेतन में धारित अवधारणाएं ही इसकी जिम्मेदार हैं।चेतन तो अवचेतन का कर्मचारी है,और वही करता है जो अवचेतन में संधारित गुण उसको निर्देशित करते है।हमारे संस्कार,पारिवारिक परिवेश,सामाजिक संरचनाएं ही अवचेतन की गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार है।अर्थात हमारे ऑटो पायलट मोड का सफर हमने स्वयं सृजित किया है।
सजग व सतर्क रहना प्राणी जगत की खूबी है,आपने देखा होगा खतरा भांपने में तथा तुरंत एक्शन लेने में प्राणी जगत अत्यंत ही माहिर है।ऐसा क्यों है ? निश्चित रूप से उनके अवचेतन में विचार करने का गुण समाहित नहीं है,इसलिए उसमें व्यर्थ का कचरा भी जमा नहीं है।अगर कहा जाए कि,प्राणी जगत,मनुष्य जगत से ज्यादा बीइंग माईंडफुल है,तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी।तो क्या ईश्वर ने जो विचार शक्ति तथा विवेक मानव को दिया है,क्या उसका दुरुपयोग हो रहा है।स्थिति सब हमारे सामने है। चालाकी,लोभ,इच्छाएं,वासनाएं इत्यादि वृतियां,हमारे अंदर इनबिल्ट नहीं थी।यह उपलब्धियां हमने जन्म के पश्चात अपने परिवेश से हासिल की हैं।क्या इनको अब परिवर्तित करना आसान है,निश्चित रूप से यह एक कठिन कार्य है।लेकिन अगर मानव जीवन का वास्तविक उद्देश्य हासिल करना है,तो होश में आ जाना निहायत ही आवश्यक है।
जीवन का सार ही आनंद,प्यार,उल्लास और उर्जामय स्वास्थ्य जिंदगी को जीना है। कितनों के पास यह सब उपलब्ध है।अनेकों संसाधनों के बाद भी उक्त गुण दुर्लभ ही है। इन सब की सुलभता के लिए सर्वप्रथम यांत्रिक वृतियां त्यागने की जरूरत है।चेतन मन हमेशा सजग ,सतर्क व प्राकृतिक पंचतत्वों का उपभोग करने हेतु समर्थ होना चाहिए।यह तभी हो सकता है,जब हम ऑटो पायलट मोड त्याग दें,और सजग रहते हुए प्रत्येक कार्य क्रियान्वित करें।यह रूपांतरण आपको जीवन के नए आयाम से परिचित कराएगा।जब हर समय वर्तमान में रहने की आदत हो जाएगी तो, अमूल्य प्राकृतिक पंचतत्वों का उपभोग कर सकेंगे,विशेषकर आकाश तत्व जो कि,चेतना के उत्थान व विस्तार में अत्यंत लाभकारी है,आपके लिए संजीवनी बूटी का कार्य करेगा।कोई भी ध्यान,मेडिटेशन तब तक सफल नहीं हो सकता,जब तक हमारा चेतन ,भूत और भविष्य की चिंताओं से मुक्त होकर वर्तमान में न रहे।अनेकों लोग जो शिकायत करते हैं कि,उनको मेडिटेशन से लाभ नहीं होता,इसी कारण से है।
तो सर्वप्रथम तैयार हों ,चेतन मन को वर्तमान में रखने की आदत डालने के लिए।बीइंग माइंड फुल मेडिटेशन की प्रैक्टिस करें।दिन में जब भी समय मिले अपने आप को कुछ समय के लिए विचार मुक्त करके,सांसों पर ध्यान केंद्रित रखें,आसपास की ध्वनियां सुनें , उन पर कोई प्रतिक्रिया न करें,रात को सोने से पहले विचारमुक्त होकर शरीर के सभी अंगों पर फोकस करें व चेतना का प्रवाह समस्त शरीर में अनुभव करें।दिन भर की गतिविधियों का स्मरण विपरीत क्रम में करें,अर्थात सबसे पहले, सोने के पूर्व से लगाकर सुबह उठने तक।स्मरण करें कि दिन भर किन किन लोगों ने आपको हर्ट किया है, उन सबको माफ कर दें।सुबह उठने पर सर्वप्रथम मन को विश्रांत अवस्था में रख कर शांत, प्रेमपूर्वक,और आनंदित रहने का अभ्यास करें। ईश्वर के साथ साथ, उन समस्त लोगों के आभारी हो,जिन्होंने किसी न किसी रूप में आपको सहयोग किया है।फिर देखें कैसे कुछ ही समय में आपका रूपांतरण होना प्रारम्भ हो जाता है।बीइंग माइंड फुल मेडिटेशन विधा की नियमित प्रेक्टिस,मार्गदर्शन इत्यादि हेतु भोपाल में बीइंग माइंड फुल फाउंडेशन की स्थापना की गई है।इस संस्था के द्वारा नियमित रूप से शिविर व व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते है,जो कि चेतन मन के सजगता की दिशा में अत्यंत उपयोगी हैं।
लेख समाप्ति से पूर्व आपसे आव्हान है कि,तुरंत माइंड का ऑटो पायलट मोड समाप्त कर, अपने निजी वाहन का संचालन स्वयं करें।किशोर कुमार के गीत “जिंदगी का सफर,है ये कैसा सफर,कोई समझा नहीं,कोई जाना नहीं “ को अब समझ लें तथा, वही आनंद,उल्लास,ऊर्जा,प्रेम प्राप्त करें,जिसके लिए प्रभु ने आपकी पदस्थापना, इस लोक में की है।
सप्रेम
गुरमीत सिंह












Comments

  1. Respected Sir, In my opinion defaulting to “autopilot mode” is often a result of loneliness or lack of inspiration, and implementing mindfulness into daily routine can be an antidote to both. All should try to stop living life on autopilot as per antidote suggested in the blog. Regards Moonis Ansari

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Muneesh for your valuable thinking.Exactly we should keep in mind always the present situation and work accordingly with joy ful state

      Delete
  2. Great gurmeet, itana time kaha se nikal lete ho bhai.bahut badiya lekh hai.badhai������������������������

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks dear Haneef.Now free time whenever found,used in these writing and related works. Greatful for your compliments

      Delete
  3. शत् प्रतिशत सत्य व्याख्या हम सबकी जीवन शैली की ।हम खो ही गए हैं बिना यह जाने की असल में खोना किसे है ।अंधाधुंध या कहें कापी पैस्ट सी बना ली है ज़िन्दगी ।जो है उससे परे की ,पाने की चाह.....जीने की वजहों को कम और कम और बिल्कुल ही कम करती जा रही हैं ।
    ......अद्भुत अभिव्यक्ति बेहद ही सरल शब्दों में ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके सटीक चिंतन व व्याख्या हेतु बधाई।आपके शब्द उत्साह वर्धन करते है,आपको बहुत बहुत,धन्यवाद

      Delete
  4. सर ,
    आज की मानव पीढ़ी के लिए शारीरिक तल से ऊपर उठ कर मानसिक तल में भी चैतन्य स्तर तक विकास पर ध्यान देते हुए मानव के स्वरूप को पहचानते हुए आत्म कल्याण पर केन्द्रित आपके लेख आपकी पहचान वर्तमान संतो के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं। ये हम सबके ये प्रेरणा स्रोत की भांति आत्मोन्नति में सहायक है।
    पूर्व एव वर्तमान संतो एवम ईश्वर स्वरूप गुरूओं के आशीष से आपको जो लेखन की प्रेरणा आपको मिलती है उसके लिए आपको साधुवाद!
    वर्तमान लेख द्वारा चैतन्यता के उत्कृष्ट तल पर ले जाने के लिये विशेष आभर

    ------विनय राठी

    ReplyDelete
  5. राठी जी,आपके प्रेरणादायक कमेंट्स के लिए धन्यवाद।आपका चिंतन व अभिमत एकदम सही है।वास्तव में मानसिक तल पर विचार करने और अंगीकृत करने की नितांत आवश्यकता है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

अवचेतन के मित्र बनें,मालिक नहीं।

दौड़े तो खुशी हासिल करने के लिए