दौड़े तो खुशी हासिल करने के लिए
दौड़े तो, खुशी हासिल करने के लिए,यही वास्तविक सफलता है।
गुरमीत सिंह
सफलता का अर्थ
किसको पता है।क्या कोई स्वयं को सफल घोषित करता है, प्राय: दूसरे व्यक्ति ही किसी को सफल बताते है।किसी एक व्यक्ति द्वारा आकलित सफल व्यक्ति दूसरे के दृष्टिकोण में आंशिक सफल अथवा असफल भी होता है।अगर यह सही है,तो सफलता की सर्वमान्य वैश्विक परिभाषा क्या है।अगर कोई सुधि पाठक विद्वान सफलता की पॉवर,पैसा,संसाधन से सम्बन्धित सर्वमान्य तथा यूनिवर्सल स्वीकृत परिभाषा बता सकता है,तो उसका स्वागत है।ऐसे पॉवर फुल व सफल व्यक्तियों की सूची प्रति वर्ष कुछ अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं, संगठनों द्वारा घोषित की जाती है,लेकिन मजे की बात यह है कि,यह सूची व उनकी वरीयता प्रति वर्ष बदलती रहती हैं। अर्थात जो व्यक्ति भारी सफल था अचानक कुछ समय बाद असफल अथवा कम सफल हो गया।अब ऐसी सफलता के क्या मायने है,जो अस्थिर है,बरसो दौड़ भाग करके,स्वास्थ्य खराब करके,परिवार की अपेक्षाओं पर ध्यान न देकर जो तथाकथित सफलता प्राप्त की,वह अचानक तिरोहित हो गई,अब पूरे जीवन की मेहनत व्यर्थ हो गई।
तो सफलता क्या है? क्या भौतिक संसाधन,शक्ति तथा अपार धन हासिल कर लेना ही सफलता है।जो हासिल कर लेता है वह संतुष्ट नहीं है,कभी भी अपने धन से शक्ति तथा संसाधनों से संतुष्ट होना मानव की फितरत में भी नहीं है। आज काफी सारे लेखक, यू ट्यूब शो, लाईफ कोच, पत्रिकाएं गारंटी के साथ सफल होने के नुस्खे बताती है।प्रेरक लेख, कहानियां उनकी नजरो में सफल लोगों की शैली,कार्य में समर्पित होकर लगे रहने, व उनकी ऊर्जा के किस्से हम आए दिन पढ़ते है,कुछ को जोश आ जाता है, व होश खोकर उनके पद चिन्हों का अंधानुकरण करने लगते हैं।इनमें से शायद पांच ,दस प्रतिशत लोग जो लक्ष्य रखते हैं,पा लेते हैं,परंतु अधिकांश इस मैराथन को अधूरा छोड़ देते हैं,अथवा बीच में ही धारा शायी हो जाते हैं,काफी समय बर्बाद करने के बाद अपने मूल स्वभाव में लौट आते हैं।वास्तव में अतिरेक पूर्ण लक्ष्य निर्धारित करने के पूर्व व्यक्ति अपने ज्ञान,विवेक,शारीरिक व मानसिक शक्ति का आकलन नहीं कर पाता है।ये तथाकथित प्रेरक लेखक भी इस पहलू की सर्वथा उपेक्षा कर देते है,अथवा उन्हें इस महत्वपूर्ण कारक का ध्यान नहीं होता है।जिन्हें वह सब मिल भी जाता है,वह भी प्रतिस्पर्धा,ईर्ष्या, क्रोध,अशांति,नफरत,अंहकार के शिकार हो जाते है,इस तथाकथित सुख व साधनों का दिल से उपभोग करने असफल रहते हैं।ऐसे कितने प्रतिशत लोग होंगे जिनकी आत्मा ,मन,शरीर व परिवार इस सफलता के बाद आनंदित रहता होगा।पाठक स्वयं अंदाजा लगा सकते है,शायद पांच से दस प्रतिशत।अर्थात सफलता हेतु जो मानक व लक्ष्य निर्धारित किए गए थे, वे भ्रामक व असत्य थे।
ऐसे भी लोग है,जिनके लिए जीवन एक अमूल्य धरोहर है, व आनंदित रहना उनका मूल स्वभाव है।वर्तमान के प्रतिस्पर्धी युग में आनंदित रहना भी आसान नहीं है,जब सर्वाइवल का संकट हो,आजीविका का प्रबंध दुष्कर हो तो,आनंद खोजना लोगों को मजाक लगता होगा।ऐसे में ये लेखांश उनके लिए निश्चित रूप से अव्यवहारिक ही होगा।यह सत्य भी है कि,कल का ठिकाना नहीं,और आनंदित रहने ,खुशी प्राप्ति की बात करते हो।वास्तव में यह मन:स्थिति बचपन से रोपे गए संस्कारों,सामाजिक व पारिवारिक परिवेश तथा हमारी शिक्षा प्रणाली की देन है।
बचपन से मन के पोषण पर शायद ही कोई ध्यान देता हो।समाज,परिवार तथा शिक्षा जो सिखा देती है,वह अवचेतन में इतने गहरे स्थाई रूप में प्लांट हो जाता है कि,हम अनजाने में इन्हीं प्लांटेड संस्कारों के मार्गदर्शन के अनुसार चलते है।विवेक और बुद्धि भी इससे इतर कुछ नहीं सोचती।संघर्ष काल तो हर युग में रहा है,तथा निरन्तर अनेक चुनौतियों के साथ ही जीना है,ऐसे में अगर सफलता की परिभाषा को आनंद,प्रेम,दया तथा शांति के साथ जोड़ दिया जावे, व साथ ही प्रत्येक चुनौती को शांत मस्तिष्क के साथ , आनंद अनुभव करते हुए सामना किया जाए,तो छोटी छोटी उपलब्धियां भी असीम ऊर्जा,उल्लास तथा खुशी का अनुभव देंगी।यही वास्तविक सफलता है,जब उल्लास युक्त मन, कम संसाधनों में भी हवा में उड़ रहा हो,तब आप किसी करोड़पति ,अरब पति से कम नहीं होंगे।
हमारी आत्मा का मूल स्वभाव प्रेम तथा आनंद के वाइब्रेशन से युक्त है। जहां से भी लेश मात्र प्रेम,स्नेह,सम्मान मिलता है आत्मा बाग बाग हो जाती है, मन प्रफुल्लित हो उठता है,ऐसे आनंद की तुलना अनेकों भौतिक संसाधनों से भी नहीं हो सकती।असली जीवन की सफलता की परिभाषा यही हो सकती है,जब हमारा परिवार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ सर्वथा आनंदित स्थिति में,पूर्ण स्वस्थ हो,प्रेममय हो,दिव्य शक्ति का आभारी हो।यही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।इसी दिशा में किए गए प्रयास शाश्वत तथा स्थाई सफलता वाले होंगे।हमें किंचित भी भौतिक सफलता को खोने,अपनी रैंकिंग के नीचे आने का भय नहीं रहेगा।
अत:प्रत्येक कर्म,अपनी क्षमताओं के अनुसार,मानसिक शांति,प्रेम व विश्वास के साथ,आनंदित हृदय के साथ ये गीत गाते हुए "जोत से जोत जागते चलो,प्रेम की गंगा बहाते चलो " निरन्तर असली सफलता को अंगीकार कर करें।यही मूल मंत्र है जीवन जीने का जो ईश्वर हमसे अपेक्षा रखते हैं।
सप्रेम
गुरमीत सिंह
वाकई...सूंदर व्याख्या
ReplyDeleteउम्र के अनुसार सफलता का पैमाना बदलता ही है और अंत मे असली जीवन की सफलता की परिभाषा यही हो सकती है,जब हमारा परिवार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ सर्वथा आनंदित स्थिति में,पूर्ण स्वस्थ हो,प्रेममय हो,दिव्य शक्ति का आभारी हो।यही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।इसी दिशा में किए गए प्रयास शाश्वत तथा स्थाई सफलता वाले होंगे।हमें किंचित भी भौतिक सफलता को खोने,अपनी रैंकिंग के नीचे आने का भय नहीं रहेगा।
मानव दर्शन का सूक्ष्मता से किया गया विश्लेषण लेख अत्यंत सराहनीय है। जिसका पंच लाइन
Delete"हमारी आत्मा का मूल स्वभाव प्रेम तथा आनंद के वाइब्रेशन से युक्त है। "
आगे भी मानव मंथन के लेख की अपेक्षा रहेगी।
सर ,
Deleteबहुत ही सार्थक एवं सरभौमिक विषय पर लोगो को स्मरण कराया है । ऐसे समय मे जब लोग "गुलाब" के महत्व को भूलकर "गेहूँ" तक सीमित रह गये है आपका ये लेख पुनः गुलाब की महत्ता पर प्रकाश डाल रहा है।
श्री रामव्रक्ष बेनीपुरी के अनुसार गुलाब प्रतीक है मन मस्तिष्क के स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता का और गेहूँ प्रतीक है पेट का ।
लेख द्वारा दोनो में सामंजस्य रखते हुए ईश्वर एवं प्रकृति प्रदत्त खुश रहने के गुण व धर्म को याद दिलाता आपका सारगर्भित लेख आज के समय मे एक प्रेरणादायक है। ईश्वर एवं प्रकुति के समीप आने में सहायक ये लेख मनन करने वालो को हर हाल में खुश रहने सहायक होगा
साभार,
धन्यवाद,आप सहमत हैं,जानकार अत्यंत खुशी हुई।इतना ध्यान से पढ़ने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteवाह डीयर गुरमीत, बहुत ही शानदार व्यक्तत्व । कृपया पृयास जारी रखें । सराहनीय ।
ReplyDeleteराजेश गोयल
धन्यवाद राजेश,आप दोस्तों की प्रेरणा से निरन्तर लेखन होता है।
Deleteआपके आत्मिक अध्ययन में गहराई है। हमेशा आनंदित रहना ही जीवन की सफलता है। बहोत अच्छा।
ReplyDeleteमिलिंद भाई धन्यवाद
Deleteअति उच्च विचार एवम् प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद आपके कमेंट के लिए
Deleteअद्भुत व अप्रतिम अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteपैमाना या कुछ मानक स्थापित करना ,अपनेआप में ही परिवर्तनशील है ।इस लिए सफलता या आनंद को परिमाणवाचक मानना ही व्यर्थ है । यह तो मात्र एक अवस्था है । कब कौन और कहाँ प्राप्त कर जाए , यह भी विचाराधीन ही है ।
पर अगर है तो है ही और नही तो नही ।
सुंदर विवेचना,ध्यान से पढ़ने व अपने विचारों को प्रकट करने के लिए धन्यवाद
DeleteVery nice sir...
ReplyDeleteThanks for your motivational comments
DeleteRespected Sir, This is one more extraordinary talent of your multifaceted personality. Regards Moonis Ansari
ReplyDeleteThanks for your motivational comments...Munish bhai
Deleteप्रभु, बहुत ही शानदार लिखा है, जीवन को सही तरीके से जीने का मंत्र और समझ आपने बताई है इस लेख में।
ReplyDeleteप्रभु, बहुत ही शानदार लिखा है, जीवन को सही तरीके से जीने का मंत्र और समझ आपने बताई है इस लेख में।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रभु,आपके उत्साहवर्धक उदगारों के लिए
Deleteसत्य है ,करोड़पति /अरबपति के रूप मैं खुशी की तुलना नहीं की जा सकती ।
ReplyDelete"सही कहा खुशी ही दिव्य है"
धन्यवाद आपके प्रेरक तथा उत्साहवर्धक कमेंट के लिए
Deleteमानव दर्शन का सूक्ष्मता से किया गया विश्लेषण लेख अत्यंत सराहनीय है। जिसका पंच लाइन
ReplyDelete"हमारी आत्मा का मूल स्वभाव प्रेम तथा आनंद के वाइब्रेशन से युक्त है। "
सराहनीय है।
आगे भी मानव मंथन के लेख की अपेक्षा रहेगी।
धन्यवाद आपकी विवेचना सराहनीय है।ध्यान से पढ़ने व उत्साह वर्धन हेतु शुक्रिया
DeleteInteresting perspective
ReplyDeleteThanks Prachi jee,as you see it in different way(perspective)
Deleteउपरोक्त लेख ना केवल प्रेरणा दायक है बल्कि सही मायनों में हमे सफलता की परिभाषा समझने में भी सहायक है।
ReplyDeleteयदि परिभाषित न की जा सकने वाली सफलता,सदैव स्थायी न रहने वाली सफलता को हम आनंद और खुशी से जोड़ दें तो फिर हम आनंद एवं खुशियों के पीछे ही दौड़ेंगे।
यह जानकर आश्चर्य होना चाहिए कि भूटान एक मात्र ऐसा देश है जो अपने देश की प्रगति को G D P से नही आंकता बल्कि Happiness index से मापता है।
यदि वहाँ के नागरिक बीते वर्ष से अधिक खुश हैं इसका मतलब है देश ने प्रगति की है। इस लेख से व्यक्ति को यह सीखने को मिलता है कि खुशियां मोह माया नही, अपितु जो आपके पास है वही है । आपकी इस लेखन कला का स्वागत है
उत्तम विचार।
धन्यवाद जितिन भाई।आपके द्वारा लेख की उत्तम मीमांसा की गई है।प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया
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ReplyDeleteधन्यवाद संजय
Delete🙏🙏🙏 बहुत सुन्दर सर, आपसे बहुत कुछ सीखा है। आगे भी सीखने को तीव्र इच्छा है। 🙏🙏
ReplyDeleteसर,
ReplyDeleteसफलता के मायने पर आपका सारगर्भित लेख श्री रामव्रक्ष बेनीपुरी के "गेहूं बनाम गुलाब" की याद दिलाता है जिसमे गेहूँ पेट का एवं गुलाब मन मस्तिष्क का प्रतीक है। सफलता में खुशी यानी मन मस्तिष्क पर ध्यान देते हुए एक सफल एव सार्थक जीवन की आवश्यकता स्मरण कराने के लिए साधुवाद !
भविष्य में भी ऐसे प्रेरणादायक लेख की प्रतीक्षा में
----------विनय राठी
धन्यवाद राठी जी।आपके द्वारा लेख पढ़ने के साथ ही सुन्दर उदहारण प्रस्तुत किया है।
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