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अवचेतन के मित्र बनें,मालिक नहीं।

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अवचेतन के मित्र बनें,मालिक नहीं।   गुरमीत सिंह आज  एक उपदेश, बहुत जोरो पर प्रचलित है कि , अपने मन के स्वामी बनिए, उसके अधीनस्थ नहीं।यह उपदेश प्रचलन में इसलिए आया है कि,व्यक्ति अपने मन या कहें चेतन मन के निर्देशों के पालन में अत्यंत व्यस्त है,इस यांत्रिक जीवन में,स्वयं का होश नहीं है।अपने होने अथवा न होने की कोई सोच तो बची ही नहीं है।अब मनुष्य को याद दिलाना पड़ रहा है कि,भाई आपका एक पृथक आस्तित्व है,परम सत्ता ने आपका अवतरण विशेष प्रयोजन की पूर्ति हेतु,इस धरा पर कराया है।प्राणी जगत तथा मानव जगत में सबसे बड़ा अंतर यही है कि,केवल रोजी रोटी तथा सुरक्षा के प्रबंधो के अतिरिक्त,आत्मा को मानव जीवन के निहित परमानंद प्राप्त करने का उद्देश्य भी समाहित है।हमारे वर्तमान सामाजिक ,पारिवारिक परिवेश तथा ज्ञान प्रदान करने की प्रणाली से,मनुष्य अपने होने के उद्देश्य को जान ही नही पा रहा है। अभी जो जीवन निर्वाहन की प्रक्रियाएँ तथा व्यवस्थाएं हैं,उनमे समझा जाता है कि,वर्तमान प्रचलित शिक्षा प्रणाली अंतर्गत डिग्री प्राप्त हो जाने से जीवन यापन हेतु नोकरी उपलब्ध हो जाएगी,अथवा निजी व्यवसाय,पुशतैनी व्यवसाय को चलाया

मन को स्वस्थ्य रखना ही लक्ष्य होना चाहिए....गुरमीत सिंह

मन को स्वस्थ्य रखना ही लक्ष्य होना चाहिए....गुरमीत सिंह

जगत संगीत से अनुकूलन,अनंत से जोड़ता है।

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जगत संगीत से अनुकूलन, अनन्त से जोड़ता है। गुरमीत सिंह आहत नाद और अनाहत नाद,दोनों ही जगत में व्याप्त है,परन्तु हम में से अधिकांश को आहत नाद का ही अनुभव है।आहत नाद अर्थात भौतिक संगीत,संकीर्तन,गीतों,क्लासिकल संगीत,लोक संगीत,पश्चिमी संगीत इत्यादि के रूप में प्रचलित है।आहत नाद का एक और रूप शोर के रूप में भी वातावरण में व्याप्त रहता है।जिन आहत नाद की तरंगों से व्यक्ति आकर्षित होता है, व जुड़ता हुए महसूस करता है,ऐसा नाद प्राय:संगीत के रूप में परिभाषित होता है।व्यक्ति स्वयं में धारित भावनाओं की गुणवत्ता के अनुसार संगीत की प्रकृति पसंद करता है।कुछ लोग शुद्ध शास्त्रीय संगीत पसंद करते है,कुछ मधुर धुनों के दीवाने है,कुछ तीव्र गति के संगीत पर थिरकते है।ऐसे भी लोग पाए जाते है,जिनको संगीत से कोई लगाव नहीं होता।जो संगीत से दूर हैं,वे संभवत:किन्हीं मानसिक परेशानियों से पीड़ित हो सकते हैं,अथवा संगीत की मधुरता उनको कोई भी मानसिक आनंद नहीं दे पाती है।अवचेतन में संकलित गुण तथा भावनाएं ही,व्यक्ति के निजी पसंद तथा शौक को निर्धारित करती हैं।जो लोग संगीत की कर्णप्रिय ध्वनियों से भी आनंदित नहीं हो पाते,उनकी आत

ऑटो पायलट मोड से बीइंग माइंड फुल तक

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ऑटो पायलट मोड से, बीइंग माईंडफुल होने का रूपांतरण।         गुरमीत सिंह आज अधिकांश वाहन निर्माता उनके वाहनों के उत्पादन में ऑटो पायलट मोड तकनीक का प्रयोग करने को प्रोत्साहन दे रहे हैं।अब ड्राइवर आरामतलब बनाए जा रहे हैं,वाहन स्वयमेव ही अपना रास्ता खोज कर भीड़ भाड़ वाले स्थानों से गुजर कर मंजिल तक निर्धारित समय पर गति संधारित करते हुए पहुंच जाएंगे।चालकों के पास ज्यादा कार्य नहीं बचा,कुछ वाहन तो चालक विहीन रहेंगे।गाड़ी में लगे उन्नत सेंसर चालन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व निभाएंगे। हम लोगों में से अधिकांश लोग,पूर्व से ही स्वचालित मोड पर दैनिक क्रिया कलाप कर रहे हैं।निवास से कार्य स्थल पर आने जाने,तथा कार्य स्थल पर बहुत से कार्य अवचेतन मन खुद ही करता रहता है।चेतन मन अर्थात ड्राइवर कहीं और खोया रहता है।कार्यस्थल अथवा बाजार से कब गंतव्य पर पहुंच गए पता ही नहीं चला। सफर में आने वाले विहंगम प्राकृतिक मनमोहक दृश्य यूं ही छूटते चले गए।चेतन मन कहीं किसी से चैटिंग में लगा रहा।जिंदगी ऐसे ही गुजरती जा रही है, ऑटो पायलट मोड पर। सुबह से रात हो जाती है,वर्षों गुजर जाते हैं,शहर के रहवासियों को पता ही नहीं

जो लोग कहते है कि, संघर्ष में खुशी,शांति तथा मुस्कुराना संभव नहीं,वो क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग से सीखें

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गुरमीत सिंह  जीवन के  खेल को सहवाग से सीखें  कि,कैसे आनंदित होकर संघर्ष कर सकते हैं। इस लेख का उद्देश्य,महान क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की जीवनी पर प्रकाश डालना नहीं है,न ही उनके बनाए गए हैरत अंगेज रेकॉर्ड्स की बात करना है।इस महान क्रिकेटर के व्यक्तित्व के वो पहलू जिसने उन्हें, इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,से प्रेरणा लेकर जीवन दर्शन को समझना है। यद्यपि उनके समकालीन अन्य क्रिकेटर्स ने भी अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है,लेकिन उनके बल्लेबाजी की शैली के साथ ,जो बॉडी लैंग्वेज का कमाल होता है,वैसे बल्लेबाज बिरले ही हैं।सबकी अपनी अपनी खूबियां हैं,लेकिन एक अनोखी खूबी जो सहवाग में परिलक्षित होती है,वह हम सब के आम जीवन के लिए प्रेरणस्त्रोत है। सर्वप्रथम हम ओपनिंग बल्लेबाज की स्थिति का स्मरण करें।आम तौर पर ओपनिंग पारी का ओपनिंग बैट्समैन,क्रीज पर आने के बाद कुछ समय तक अपनी दक्षता प्रदर्शन को रोकता है,परिस्थितियों को आकलित करता है, बॉलर और पिच खतरनाक है तो,अपने सीखें हुए लॉजिक का प्रयोग करता है, व इस प्रक्रिया में यंत्रवत होकर अपने स्वाभाविक व्यक्तित्व को भूल कर नर्वसनेस का शिकार हो जाता है।इस दबाव में अधिक

दौड़े तो खुशी हासिल करने के लिए

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दौड़े तो, खुशी हासिल करने के लिए,यही वास्तविक सफलता है। गुरमीत सिंह सफलता का अर्थ   किसको पता है।क्या कोई स्वयं को सफल घोषित करता है, प्राय: दूसरे व्यक्ति ही किसी को सफल बताते है।किसी एक व्यक्ति द्वारा आकलित सफल व्यक्ति दूसरे के दृष्टिकोण में आंशिक सफल अथवा असफल भी होता है।अगर यह सही है,तो सफलता की सर्वमान्य वैश्विक परिभाषा क्या है।अगर कोई सुधि पाठक विद्वान सफलता  की  पॉवर,पैसा,संसाधन से सम्बन्धित सर्वमान्य तथा यूनिवर्सल स्वीकृत परिभाषा बता सकता है,तो उसका स्वागत है।ऐसे पॉवर फुल व सफल व्यक्तियों की सूची प्रति वर्ष कुछ अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं, संगठनों द्वारा घोषित की जाती है,लेकिन मजे की बात यह है कि,यह सूची व उनकी वरीयता प्रति वर्ष बदलती रहती हैं। अर्थात जो व्यक्ति भारी सफल था अचानक कुछ समय बाद असफल अथवा कम सफल हो गया।अब ऐसी सफलता के क्या मायने है,जो अस्थिर है,बरसो दौड़ भाग करके,स्वास्थ्य खराब करके,परिवार की अपेक्षाओं पर ध्यान न देकर जो तथाकथित सफलता प्राप्त की,वह अचानक तिरोहित हो गई,अब पूरे जीवन की मेहनत व्यर्थ हो गई। तो सफलता क्या है? क्या भौतिक संसाधन,शक्ति तथा  अपार धन हासिल कर लेन

कोई गंतव्य नहीं,आनंदित रहना ही गंतव्य है।

कोई गंतव्य नहीं, आनंदित रहना ही गंतव्य है। गुरमीत सिंह   पता नहीं  किधर दौड़   रहे हैं, हम में से अधिकांश लोग ? कुछ कहते हैं,हमने लक्ष्य बनाए हैं,उनको प्राप्त करने में लगे हैं।बाकी लोग मृग मरीचिका की खोज में भटक रहें हैं। कहते हैं कि,सुख की तलाश जारी है। जैसा जो बताता है,उधर ही दौड़ पड़ते हैं। मंजिल तथा उसको प्राप्त करने का रास्ता बताने वाले की भी कोई कमी नहीं है।स्वयंभू विद्वान पूरे यकीन के साथ पथ प्रदर्शन में लगे है, व गाइड करने का शुल्क भी वसूल रहे हैं।यह अलग बात है कि,वे खुद,सुझाए गए रास्तों पर नहीं चलते हैं।अज्ञात मंजिल पाने के लिए, बेहोशी की हालत में ऐसे लगे हैं जैसे ,मंजिल मिलते ही सारे संसार की खुशियां उनकी झोली में होंगी,परन्तु ऐसा होता दिखता नहीं है।ये धावक बताते ही नहीं है कि उनको उनका चाहा गया डेस्टिनेशन मिल गया है ? छोटे स्टेशन रास्ते में शायद मिलते हैं,परन्तु उनका लुत्फ उठाने के लिए भी समय नहीं है।एक दिन दौड़ते दौड़ते अचानक परिदृश्य से गायब हो जाते हैं,उनके साथी धावक भी  यह कह के कि,भला आदमी था अपनी दौड़ में लग जाते हैं।   अगर इच्छा पूरी करने में  रेस लगाते रहे तो इस